लोग अक़सर मुझसे पूछते हैं, कौन हूँ मैं जानना चाहते हैं.
क्या तुम अपनी खुशियों की दास्तान हो?
या फिर अपनी आज़ादी का फरमान हो?
क्या तुम अपनी कामना का पिटारा हो?
या किसी की आँखों में चमकता हुआ सितारा हो?
क्या तुम हो सिर्फ़ एक आम इंसान?
या हर इंसान के अंदर मचलता हुआ तूफान?
क्या जवाब दूं सोचती हूँ, सच बता दूँ चाहती हूँ.
ना मैं अपनी खुशियों का पिटारा हूँ,
ना ही अपनी आज़ादी का नज़ारा हूँ.
मैं नही हूँ अपनी कामनाओ की संतान,
ना ही मैं हूँ तुम्हारे अंदर का शैतान.
नहीं रख सकती हूँ छुपाए अपने अंदर के तूफान,
नहीं रह जाना चाहती हूँ बन के एक आम इंसान.
मैं नही हूँ सितारा किसी की आँखों का,
मैं तो हूँ लोगो की नज़रों में चुभता हुआ रेगिस्तान.
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